ज्योतिष ज्ञान
दशा-अंतर्दशा फल विवेचनाध्यायः
चंद्र महादशा में सभी ग्रहों की अंतर्दशा का फल
चंद्र महादशा में चंद्रअन्तर्दशा का फल👉 यदि सवोच्च, स्वराशि, केंद्र, त्रिकोण स्थित चंद्र हो अथवा दशमेश-नवमेश से युक्त हों तो उसकी महादशा अंतर्दशा में हाथी-घोड़ा वस्त्रादि का लाभ देव और गुरुओं में भक्ति, भगवदजन दर्शन लाभ, राजयलाभ, परमसुख, यश वृद्धि और शरीर सुख मिलता है। चंद्र यदि पूर्ण बलि हो तो सेनापति आदि अधिकार का सुख मिलता है।
चंद्र महादशा में सभी ग्रहों की अंतर्दशा का फल
चंद्र महादशा में चंद्रअन्तर्दशा का फल👉 यदि सवोच्च, स्वराशि, केंद्र, त्रिकोण स्थित चंद्र हो अथवा दशमेश-नवमेश से युक्त हों तो उसकी महादशा अंतर्दशा में हाथी-घोड़ा वस्त्रादि का लाभ देव और गुरुओं में भक्ति, भगवदजन दर्शन लाभ, राजयलाभ, परमसुख, यश वृद्धि और शरीर सुख मिलता है। चंद्र यदि पूर्ण बलि हो तो सेनापति आदि अधिकार का सुख मिलता है।
चंद्रमा यदि नीच राशि मे हो, पापयुक्त हो ६-८-१२ में हो तो उसकी अंतर्दशा में धन नाश, स्थान हानि, आलस्य, संताप, राजा व मंत्री से विरोध, माता को कष्ट-बंधन व बंधुओ का नाश होता है। चंद्र यदि २-७ स्थान का स्वामी हो या १२-८ के स्वामी से युक्त हो तो शरीर मे कष्ट व अपमृत्यु भय होता है।
इसके निवारण के लिये कपिला गाय और महिषी का दान करें।
चंद्र महादशा में मंगल अंतर्दशा का फल👉 चंद्र की महादशा में भौम की अंतर्दशा हो तथा मंगल केंद्र-त्रिकोण में हो तो भाग्यवृद्धि, राजा से सम्मान, वस्त्रभूषण का लाभ, थोड़े प्रयत्न के बाद कार्य सिद्धि होती है इसमें संशय नही, गृह व कृषि में वृद्धि व व्यवहार में विजय मिलती है। यदि चंद्र सवोच्च या स्वराशि में हो तो कार्य लाभ व महासौख्य होता है।
मंगल यदि ८-६-१२ में हो या पापयुक्त अथवा दशापति से अशुभ ६-८-१२ स्थान में शत्रु दृष्ट हो तो शारीरिक कष्ट घर व कृषि में हानि, व्यवहारिकता में कमी, सेवक व राजा से कलह, बंधुओ से वियोग तथा क्रोध में वृद्धि होती है। मंगल यदि २-७ का स्वामी होकर ८ स्थान में हो या अष्टमेश हो तो अशुभ फल मिलता है, इसके दोष शमन के लिये ब्राह्मणों का सत्कार करना चाहिए।
चंद्र महादशा में राहु अंतर्दशा का फल👉 चंद्र महादशा में केंद्र या त्रिकोण स्थित राहु की अंतर्दशा हो तो आरम्भ में कुछ शुभ बाद ने चोर-सर्प व राजा अथवा सरकार का भय, पशुओं को कष्ट, व बंधु और मित्रो की हानि, मान भंग और मन सन्ताप होता है।
राहु यदि शुभ ग्रहों से युत या दृष्ट हो अथवा लग्न से ३-६-१०-१२ स्थान में हो या योगकारक ग्रह से युत हो तो उसकी अंतर्दशा में सभी कार्यो में सिद्धि, नैऋत्य और पश्चिम दिशा में स्थित राजा आदि से वाहन, वस्त्रादि लाभ तथा अभीष्ट कार्य की सिद्धि होती है।
दशेश से राहु यदि ८,१२ वे भाव मे हो और निर्बल हो तो स्थान हानि, मनोव्यथा, पुत्र कष्ट, कभी स्त्री को कष्ट तो कभी शरीर मे रोग भय, बिच्छू सर्प, चोर आदि से भय और पीड़ा होती है।
यदि दशेश से राहु केंद्र, त्रिकोण या ३-११ में स्थित हो तो तीर्थ भ्रमण, देवदर्शन, परोपकार, व धर्म कार्य मे प्रवृति होती है। राहु यदि २-७ स्थान में हो तो शारीरिक कष्ट होता है।
इसके दोष निवारणार्थ रुद्र जप, और छाग दान करना चाहिये।
पं देवशर्मा
९४१११८५५५२
९४१११८५५५२
चंद्र महादशा में चन्दर अंतर दशा का फल
Reviewed by Jyotish kirpa
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