कब देंगे शक्र देव अपना प्रभाव—-
कुण्डली में
नौ
ग्रह
अपना
समय
आने
पर
पूरा
प्रभाव
दिखाते
हैं।
वैसे
अपनी
दशा
और
अन्तरदशा के समय तो
ये
ग्रह
अपने
प्रभाव
को
पुष्ट
करते
ही
हैं
लेकिन
22 वर्ष की उम्र
से
इन
ग्रहों
का
विशेष
प्रभाव
दिखाई
देना
शुरू
होता
है।
जातक
की
कुण्डली में उस दौरान
भले
ही
किसी
अन्य
ग्रह
की
दशा
चल
रही
हो
लेकिन
उम्र
के
अनुसार
ग्रह
का
भी
अपना
प्रभाव
जारी
रहता
है।25
से
28 वर्ष – यह शुक्र का
काल
है।
इस
काल
में
जातक
में
कामुकता बढती है। शुक्र
चलित
लोगों
के
लिए
स्वर्णिम काल होता है
और
गुरू
और
मंगल
चलित
लोगों
के
लिए
कष्टकारी। मंगल प्रभावी लोग
काम
से
पीडित
होते
हैं
और
शुक्र
वाले
लोगों
को
अपनी
वासनाएं बढाने का अवसर
मिलता
है।
इस
दौरान
जो
लव
मैरिज
होती
है
उसे
टिके
रहने
की
संभावना अन्य कालों की
तुलना
में
अधिक
होती
है।
शादी
के
लिहाज
से
भी
इसे
उत्तम
काल
माना
जा
सकता
है।
ज्योतिष शास्त्र में शुक्र———
ज्योतिष शास्त्र में
शुक्र
को
शुभ
ग्रह
माना
गया
है
| ग्रह
मंडल
में
शुक्र
को
मंत्री
पद
प्राप्त है| यह वृष
और
तुला
राशियों का स्वामी है
|यह
मीन
राशि
में
उच्च
का
तथा
कन्या
राशि
में
नीच
का
माना
जाता
है
| तुला
20 अंश तक इसकी
मूल
त्रिकोण राशि भी है
|शुक्र
अपने
स्थान
से
सातवें
स्थान
को
पूर्ण
दृष्टि
से
देखता
है
और
इसकी
दृष्टि
को
शुभकारक कहा गया है
|जनम
कुंडली
में
शुक्र
सप्तम
भाव
का
कारक
होता
है
|शुक्र
की
सूर्य
-चन्द्र
से
शत्रुता , शनि – बुध से मैत्री
और
गुरु
– मंगल से
समता
है
| यह
स्व
,मूल
त्रिकोण व उच्च,मित्र
राशि
–नवांश में
,शुक्रवार में
, राशि
के
मध्य
में
,चन्द्र
के
साथ
रहने
पर
, वक्री
होने
पर
,सूर्य
के
आगे
रहने
पर
,वर्गोत्तम नवमांश में , अपरान्ह काल में ,जन्मकुंडली के तीसरे ,चौथे,
छटे
( वैद्यनाथ छटे भाव में
शुक्र
को
निष्फल
मानते
हैं
) व
बारहवें भाव
में
बलवान
व
शुभकारक होता है | शुक्र
कन्या
राशि
में
स्थित
होने
पर
बलहीन
हो
जाते
हैं
तथा
इसके
अतिरिक्त कुंडली में अपनी
स्थिति
विशेष
के
कारण
अथवा
किसी
बुरे
ग्रह
के
प्रभाव
में
आकर
भी
शुक्र
बलहीन
हो
जाते
हैं।
शुक्र
पर
बुरे
ग्रहों
का
प्रबल
प्रभाव
जातक
के
वैवाहिक जीवन अथवा प्रेम
संबंधों में समस्याएं पैदा
कर
सकता
है।
महिलाओं की कुंडली में
शुक्र
पर
बुरे
ग्रहों
का
प्रबल
प्रभाव
उनकी
प्रजनन
प्रणाली को कमजोर कर
सकता
है
तथा
उनके
ॠतुस्राव, गर्भाशय अथवा
अंडाशय
पर
भी
नकारात्मक प्रभाव डाल सकता
है
जिसके
कारण
उन्हें
संतान
पैदा
करनें
में
परेशानियां आ सकतीं हैं।
शुक्र
शारीरिक सुखों के भी
कारक
होते
हैं
तथा
संभोग
से
लेकर
हार्दिक प्रेम तक सब
विषयों
को
जानने
के
लिए
कुंडली
में
शुक्र
की
स्थिति
महत्त्वपूर्ण मानी जाती है।
शुक्र
का
प्रबल
प्रभाव
जातक
को
रसिक
बना
देता
है
तथा
आम
तौर
पर
ऐसे
जातक
अपने
प्रेम
संबंधों को लेकर संवेदनशील होते हैं। शुक्र
के
जातक
सुंदरता और एश्वर्यों का
भोग
करने
में
शेष
सभी
प्रकार
के
जातकों
से
आगे
होते
हैं।
शरीर
के
अंगों
में
शुक्र
जननांगों के कारक होते
हैं
तथा
महिलाओं के शरीर में
शुक्र
प्रजनन
प्रणाली का प्रतिनिधित्व भी
करते
हैं
तथा
महिलाओं की कुंडली में
शुक्र
पर
किसी
बुरे
ग्रह
का
प्रबल
प्रभाव
उनकी
प्रजनन
क्षमता
पर
विपरीत
प्रभाव
डाल
सकता
है।
कुंडली
धारक
के
जीवन
में
पति
या
पत्नी
का
सुख
देखने
के
लिए
भी
कुंडली
में
शुक्र
की
स्थिति
अवश्य
देखनी
चाहिए।
शुक्र
को
सुंदरता की देवी भी
कहा
जाता
है
और
इसी
कारण
से
सुंदरता, ऐश्वर्य तथा
कला
के
साथ
जुड़े
अधिकतर
क्षेत्रों के कारक शुक्र
ही
होते
हैं,
जैसे
कि
फैशन
जगत
तथा
इससे
जुड़े
लोग,
सिनेमा
जगत
तथा
इससे
जुड़े
लोग,
रंगमंच
तथा
इससे
जुड़े
लोग,
चित्रकारी तथा चित्रकार, नृत्य
कला
तथा
नर्तक-नर्तकियां, इत्र तथा इससे
संबंधित व्यवसाय, डिजाइनर कपड़ों का व्यवसाय, होटल व्यवसाय तथा
अन्य
ऐसे
व्यवसाय जो सुख-सुविधा
तथा
ऐश्वर्य से जुड़े हैं।
कारकत्व—-
प्रसिद्ध ज्योतिष ग्रंथोंके अनुसार शुक्र स्त्री
,,काम
सुख,भोग
–विलास, वाहन,सौंदर्य ,काव्य रचना ,गीत
–संगीत-नृत्य
,विवाह
,वशीकरण
,कोमलता,जलीय
स्थान
,अभिनय
,श्वेत
रंग
के
सभी
पदार्थ
,चांदी,बसंत
ऋतु
,शयनागार , ललित कलाएं,आग्नेय
दिशा
,लक्ष्मी की उपासना ,वीर्य
,मनोरंजन ,हीरा ,सुगन्धित पदार्थ,अम्लीय
रस
और
वस्त्र
आभूषण
इत्यादि का कारक है
|
रोग —–
जन्म कुंडली में
शुक्र
अस्त
,नीच
या
शत्रु
राशि
का
,छटे
-आठवें
-बारहवें भाव
में
स्थित
हो
,पाप
ग्रहों
से
युत
या
दृष्ट,
षड्बल
विहीन
हो
तो
नेत्र
रोग,
गुप्तेन्द्रीय रोग,वीर्य
दोष
से
होने
वाले
रोग
, प्रोस्ट्रेट ग्लैंड्स, प्रमेह,मूत्र
विकार
,सुजाक
, कामान्धता,श्वेत या रक्त
प्रदर
,पांडु
इत्यादि रोग उत्पन्न करता
है
|कुंडली
में
शुक्र
पर
अशुभ
राहु
का
विशेष
प्रभाव
जातक
के
भीतर
शारीरिक वासनाओं को
आवश्यकता से अधिक बढ़ा
देता
है
जिसके
चलते
जातक
अपनी
बहुत
सी
शारीरिक उर्जा तथा पैसा
इन
वासनाओं को पूरा करने
में
ही
गंवा
देता
है
जिसके
कारण
उसकी
सेहत
तथा
प्रजनन
क्षमता
पर
बुरा
प्रभाव
पड़
सकता
है
तथा
कुछेक
मामलों
में
तो
जातक
किसी
गुप्त
रोग
से
पीड़ित
भी
हो
सकता
है
जो
कुंडली
के
दूसरे
ग्रहों
की
स्थिति
पर
निर्भर
करते
हुए
जानलेवा भी साबित हो
सकता
है।
फल देने का समय—-
शुक्र अपना शुभाशुभ फल २५ से
२८
वर्ष
कि
आयु
में
,अपने
वार
व
होरा
में
,बसंत
ऋतु
में,अपनी
दशाओं
व
गोचर
में
प्रदान
करता
है
| तरुणावस्था पर भी इस
का
अधिकार
कहा
गया
है
|
ज्योतिषानुसार बारह भावों में शुक्र के द्वारा दिये जाने वाले फ़ल——-
शुक्र के लिये
ज्योतिष शास्त्रों में
जो
फ़ल
कहे
गये
है
वे
इस
प्रकार
से
है:-
प्रथम भाव में शुक्र—
जातक के जन्म
के
समय
लगन
में
विराजमान शुक्र को पहले
भाव
में
शुक्र
की
उपाधि
दी
गयी
है।
पहले
भाव
में
शुक्र
के
होने
से
जातक
सुन्दर
होता
है,और
शुक्र
जो
कि
भौतिक
सुखों
का
दाता
है,जातक
को
सुखी
रखता
है,शुक्र
दैत्यों का राजा है
इसलिये
जातक
को
भौतिक
वस्तुओं को प्रदान करता
है,और
जातक
को
शराब
कबाब
आदि
से
कोई
परहेज
नही
होता
है,जातक
की
रुचि
कलात्मक अभिव्यक्तियों में
अधिक
होती
है,वह
सजाने
और
संवरने
वाले
कामों
में
दक्ष
होता
है,जातक
को
राज
कार्यों के करने और
राजकार्यों के अन्दर किसी
न
किसी
प्रकार
से
शामिल
होने
में
आनन्द
आता
है,वह
अपना
हुकुम
चलाने
की
कला
को
जानता
है,नाटक
सिनेमा
और
टीवी
मीडिया
के
द्वारा
अपनी
ही
बात
को
रखने
के
उपाय
करता
है,अपनी
उपभोग
की
क्षमता
के
कारण
और
रोगों
पर
जल्दी
से
विजय
पाने
के
कारण
अधिक
उम्र
का
होता
है,अपनी
तरफ़
विरोधी
आकर्षण
होने
के
कारण
अधिक
कामी
होता
है,और
काम
सुख
के
लिये
उसे
कोई
विशेष
प्रयत्न नही करने पडते
हैं।
द्वितीय भाव में शुक्र—
दूसरा भाव कालपुरुष का मुख कहा
गया
है,मुख
से
जातक
कलात्मक बात करता है,अपनी
आंखों
से
वह
कलात्मक अभिव्यक्ति करने
के
अन्दर
माहिर
होता
है,अपने
चेहरे
को
सजा
कर
रखना
उसकी
नीयत
होती
है,सुन्दर
भोजन
और
पेय
पदार्थों की तरफ़ उसका
रुझान
होता
है,अपनी
वाकपटुता के कारण वह
समाज
और
जान
पहिचान
वाले
क्षेत्र में प्रिय होता
है,संसारिक वस्तुओं और
व्यक्तियों के प्रति अपनी
समझने
की
कला
से
पूर्ण
होने
के
कारण
वह
विद्वान भी माना जाता
है,अपनी
जानपहिचान का फ़ायदा लेने
के
कारण
वह
साहसी
भी
होता
है,लेकिन
अकेला
फ़ंसने
के
समय
वह
अपने
को
नि:सहाय
भी
पाता
है,खाने
पीने
में
साफ़सफ़ाई रखने के कारण
वह
अधिक
उम्र
का
भी
होता
है।
तीसरे भाव में शुक्र—
तीसरे भाव में
शुक्र
के
होने
पर
जातक
को
अपने
को
प्रदर्शित करने का चाव
बचपन
से
ही
होता
है,कालपुरुष की कुन्डली के
अनुसार
तीसरा
भाव
दूसरों
को
अपनी
कला
या
शरीर
के
द्वारा
कहानी
नाटक
और
सिनेमा
टीवी
मीडिया
के
द्वारा
प्रदर्शित करना भी होता
है,तीसरे
भाव
के
शुक्र
वाले
जातक
अधिकतर
नाटकबाज होते है,और
किसी
भी
प्रकार
के
संप्रेषण को आसानी से
व्यक्त
कर
सकते
है,वे
फ़टाफ़ट बिना किसी कारण
के
रोकर
दिखा
सकते
है,बिना
किसी
कारण
के
हंस
कर
दिखा
सकते
है,बिना
किसी
कारण
के
गुस्सा
भी
कर
सकते
है,यह
उनकी
जन्म
जात
सिफ़्त
का
उदाहरण
माना
जा
सकता
है।
अधिकतर
महिला
जातकों
में
तीसरे
भाव
का
शुक्र
बडे
भाई
की
पत्नी
के
रूप
में
देखा
जाता
है,तीसरे
भाव
के
शुक्र
वाला
जातक
खूबशूरत जीवन साथी का
पति
या
पत्नी
होता
है,तीसरे
भाव
के
शुक्र
वाले
जातक
को
जीवन
साथी
बदलने
में
देर
नही
लगती
है,चित्रकारी करने के साथ
वह
अपने
को
भावुकता के जाल में
गूंथता
चला
जाता
है,और
उसी
भावुकता के चलते वह
अपने
को
अन्दर
ही
अन्दर
जीवन
साथी
के
प्रति
बुरी
भावना
पैदा
कर
लेता
है,अक्सर
जीवन
की
अभिव्यक्तियों को प्रसारित करते करते वह
थक
सा
जाता
है,और
इस
शुक्र
के
धारक
जातक
आलस्य
की
तरफ़
जाकर
अपना
कीमती
समय
बरबाद
कर
लेते
है,तीसरे
शुक्र
के
कारण
जातक
के
अन्दर
चतुराई
की
मात्रा
का
प्रभाव
अधिक
हो
जाता
है,आलस्य
के
कारण
जब
वह
किसी
गंभीर
समस्या
को
सुलझाने में असमर्थ होता
है,तो
वह
अपनी
चतुराई
से
उस
समस्या
को
दूर
करने
की
कोशिश
करता
है।
चौथे भाव में शुक्र—
चौथे भाव का
शुक्र
कालपुरुष की कुन्डली के
अनुसार
चन्द्रमा की कर्क राशि
में
होता
है,जातक
के
अन्दर
मानसिक
रूप
से
कामवासना की अधिकता होती
है,उसे
ख्यालों में केवल पुरुष
को
नारी
और
नारी
को
पुरुष
का
ही
क्याल
रहता
है,जातक
आस्तिक
भी
होता
है,परोपकारी भी होता है,लेकिन
परोपकार के अन्दर स्त्री
को
पुरुष
के
प्रति
और
पुरुष
को
स्त्री
के
प्रति
आकर्षण
का
भाव
देखा
जाता
है,जातक
व्यवहार कुशल भी होता
है,और
व्यवहार के अन्दर भी
शुक्र
का
आकर्षण
मुख्य
होता
है,जातक
का
स्वभाव
और
भावनायें अधिक मात्रा में
होती
है,वह
अपने
को
समाज
में
वाहनो
से
युक्त
सजे
हुये
घर
से
युक्त
और
आभूषणों से युक्त दिखाना
चाहता
है,अधिकतर
चौथे
शुक्र
वाले
जातकों
की
रहने
की
व्यवस्था बहुत ही सजावटी
देखी
जाती
है,चौथे
भाव
के
शुक्र
के
व्यक्ति को फ़ल और
सजावटी
खानों
का
काम
करने
से
अच्छा
फ़ायदा
होता
देखा
गया
है,पानी
वाली
जमीन
में
या
रहने
वाले
स्थानों के अन्दर पानी
की
सजावटी
क्रियायें पानी वाले जहाजों
के
काम
आदि
भी
देखे
जाते
है,धनु
या
वृश्चिक का शुक्र अगर
चौथे
भाव
में
विराजमान होता है,तो
जातक
को
हवाई
जहाजों
के
अन्दर
और
अंतरिक्ष के अन्दर भी
सफ़ल
होता
देखा
गया
है।
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