पितृदोष कारण और निवारण Jyotish kirpa

परिवार में किसी व्यक्ति की मृत्यु के उपरांत परिवारजनों द्वारा जब उसकी इच्छाओं एवं उसके द्वाराछुटे अधुरे कार्यों को परिवारजनों द्वारा पुरा नही किया जाता। तब उसकी आत्मा वही भटकती रहती है एवं उन कार्यो को पुरा करवाने के लिए परिवारजनों पर दबाव डालती है। इसी कारणपरिवार में शुभ कार्यो में कमी एवं अशुभता बढती जाती है। इन अशुभताओं का कारण पितृदोष माना गया है। इसके निवारण के लिए श्राद्धपक्ष में पितर शांति एवं पिंडदान करना शुभ रहता हैं। भारतीय धर्म शास्त्रों के अनुसार ’’पुन्नाम नरकात् त्रायते इति पुत्रम‘‘ एवं ’’पुत्रहीनो गतिर्नास्ति‘‘ अर्थात पुत्रहीन व्यक्तियों की गति नही होती व पुत नाम के नरक से जो बचाता है, वह पुत्र है। इसलिए सभी लोग पुत्र प्राप्ति की अपेक्षा करते है। वर्तमान में पुत्र एवं पुत्री को एक समान माने जाने के कारण इस भावना में सामान्य कमी आई है परन्तु पुत्र प्राप्ति की इच्छा सबको अवश्य ही बनी रहती है जब पुत्र प्राप्ति की संभावना नही हो तब ही आधुनिक विचारधारा वाले लोग भी पुत्री को पुत्र के समान स्वीकारते है। इसमे जरा भी संशय नही है।
पुत्र द्वारा किए जाने वाले श्राद्ध कर्म से जीवात्मा को पुत नामक नरक से मुक्ति मिलती है। किसी जातक को पितृदोष का प्रभाव है या नही। इसके बारे में ज्योतिष शास्त्र में प्रश्न कुंडली एवं जन्म कुंडली के आधार पर जाना जा सकता है। 
 पाराशर के अनुसार-
कर्मलोपे पितृणां च प्रेतत्वं तस्य जायते।
तस्य प्रेतस्य शापाच्च पुत्राभारः प्रजायते।।

अर्थात कर्मलोप के कारण जो पुर्वज मृत्यु के प्श्चात प्रेत योनि में चले जाते है, उनके शाप के कारण पुत्र संतान नही होती। अर्थात प्रेत योनि में गए पितर को अनेकानेक कष्टो का सामना करनापडता है। इसलिये उनकी मुक्ति हेतु यदि श्राद्ध कर्म न किया जाए तो उसका वायवीय शरीर हमे नुकसान पहुंचाता रहता है। जब उसकी मुक्ति हेतु श्राद्ध कर्म किया जाता है, तब उसे मुक्ति प्राप्त होने से हमारी उनेक समस्याएं स्वतः ही समाप्त हो जाती है।
पितर दोष के प्रमुख ज्योतिषिय योग——–

1 लग्न एवं पंचम भाव में सूर्य , मंगल एवं शनि स्थित हो एवं अष्टम या द्वादश भाव में वृहस्पति राहु से युति कर स्थित हो पितृशाप से संतान नही होती।
2 सूर्य को पिता का एवं वृह. को पितरो का कारक माना जाता है। जब ये दोनो ग्रह निर्बल होकर शनि, राहु, केतु के पाप प्रभाव में हो तो पितृदोष होता है।
3 अष्टम या द्वादश भाव में कोई ग्रह निर्बल होकर उपस्थित हो तो पितृदोष होता है।
4 सूर्य, चंद्र एवं लग्नेश का राहु केतु से संबंध होने पर पितृदोष होता है।
5 जन्मांग चक्र में सूर्य शनि की राशि में हो एवं वृह. वक्री होकर स्थित हो तो ऐसे जतक पितृदोष से पिडित रहते है।
6 राहु एवं केतु का संबंध पंचम भाव-भावेश से हो तो पितृदोष से संतान नही होती है।
7 अष्टमेश एवं द्वादशेश का संबंध सूर्य वृह. से हो तो पितृदोष होता है।
8 जब वृह. एवं सूर्य नीच नवांश में स्थित होकर शनि राहु केतु से युति-दृष्टि संबंध बनाए तो पितृदोष होता है।
केसे करें पितृदोष निवारण———–
1 पितृदोष निवारण के लिए श्राद्ध करे। समयाभाव में भी सर्वपितृ अमावस्या या आश्विन कृष्ण अमावस्या के दिन श्राद्ध अवश्य श्रद्धापूर्वक करे।
2 गुरूवार के दिन सायंकाल के समय पीपल पेड की जड पर जल चढाकर सात बार परिक्रमा कर घी का दीपक जलाए।
3 प्रतिदिन अपने भोजन मे से गाय, कुते व कौओ को अवश्य खिलाए।
4 भागवत कथा पाठ कराए रूा श्रवण करे।
5 नरायण बली, नागबली आदि पितृदोष शांति हेतु करे।
6 माह में एक बार रूद्राभिषेक करे। संभव नही होने पर श्रावण मास में रूद्राभिषेक अवश्य करे।
7 अपने कुलदेवी-देवता का पुजन करते रहे।
8 श्राद्ध काल में पितृसुक्त का प्रतिदिन पाठ अवश्य करे।
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