राज योग (Raj Yogas)
राजयोग कोई विशिष्ट योग नहीं है यह कुण्डली में बनने वाले कई योगों का प्रतिफल है. कुण्डली में जब शुभ ग्रहों का योग बनता है तो उसके आधार पर राजयोग का आंकलन किया जाता है. इस ग्रह के आंकलन के लिए लग्न के अनुसार ग्रहों की शुभता, अशुभता, कारक, अकारक, विशेष योगकारक ग्रहो को देखना होता है साथ ही ग्रहों की नैसर्गिक शुभता/अशुभता का ध्यान रखना होता है. राज योग के लिए केन्द्र स्थान में उच्च ग्रहों की उपस्थिति, भाग्य स्थान पर उच्च का शुक्र, नवमेश एवं दशमेश का सम्बन्ध बहुत महत्वपूर्ण होता है. कुण्डली में अगर कोई ग्रह अपनी नीच राशि में मौजूद है तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह फलदायी नहीं होगा क्योंकि जहां नीच राशि में ग्रह की स्थिति होगी वहीं से सप्तम उस ग्रह की दृष्टि अपने स्थान पर रहेगी. गौर करने के बात यह है कि इसका क्या फल होगा यह अन्य ग्रहों से सम्बन्ध पर निर्भर करेगा.
राजयोग कोई विशिष्ट योग नहीं है यह कुण्डली में बनने वाले कई योगों का प्रतिफल है. कुण्डली में जब शुभ ग्रहों का योग बनता है तो उसके आधार पर राजयोग का आंकलन किया जाता है. इस ग्रह के आंकलन के लिए लग्न के अनुसार ग्रहों की शुभता, अशुभता, कारक, अकारक, विशेष योगकारक ग्रहो को देखना होता है साथ ही ग्रहों की नैसर्गिक शुभता/अशुभता का ध्यान रखना होता है. राज योग के लिए केन्द्र स्थान में उच्च ग्रहों की उपस्थिति, भाग्य स्थान पर उच्च का शुक्र, नवमेश एवं दशमेश का सम्बन्ध बहुत महत्वपूर्ण होता है. कुण्डली में अगर कोई ग्रह अपनी नीच राशि में मौजूद है तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह फलदायी नहीं होगा क्योंकि जहां नीच राशि में ग्रह की स्थिति होगी वहीं से सप्तम उस ग्रह की दृष्टि अपने स्थान पर रहेगी. गौर करने के बात यह है कि इसका क्या फल होगा यह अन्य ग्रहों से सम्बन्ध पर निर्भर करेगा.
कुण्डली में राजयोग किसी ग्रह विशेष से नहीं बनता है बल्कि इसमें सभी ग्रहों की भूमिका होती है. ज्योतिषशास्त्र के नियामानुसार कुण्डली में चन्द्रमा अपनी स्थिति से योगों को काफी प्रभावित करता है. चन्द्रमा के निर्बल होने पर योगकारक ग्रह भी अपना फल नहीं दे पाते हैं. केन्द्र या त्रिकोण भाव में चन्द्रमा यदि पूर्ण बली शुक्र या बृहस्पति से दृष्टि होता है तो यह राजयोग का फल देता है और व्यक्ति को राजा के समान सुख प्रदान करता है.
राजयोग के प्रकार (Types of Rajyoga)
विपरीत राजयोग (Vipreet Rajyoga)त्रिक स्थानों के स्वामी त्रिक स्थानों (If the Trikha lorda are in the Trika houses) में हों या युति अथवा दृष्टि सम्बन्ध बनते हों तो विपरीत राजयोग बनता है. इसे उदाहरण से इस प्रकार समझा जा सकता है कि अष्टमेश व्यय भाव या षष्ठ भाव में हो एवं षष्ठेश यदि अष्टम में, व्ययेश षष्ठ या अष्टम में हो तो इन त्रिक भावों के स्वामियों की युति दृष्टि अथवा परस्पर सम्बन्ध हो और दूसरे सम्बन्ध नहीं हों तो यह व्यक्ति को अत्यंत धनवान और खुशहाल बनाता है. इस योग में व्यक्ति महाराजाओं के समान सुख प्राप्त करता है. ज्योतिष ग्रंथों में यह भी बताया गया है कि अशुभ फल देने वाला ग्रह जब स्वयं अशुभ भाव में होता है तो अशुभ प्रभाव नष्ट हो जाता है.
केन्द्र त्रिकोण राजयोग (Kendra Trikon Rajyoga)
कुण्डली में जब लग्नेश का सम्बन्ध केन्द्र या त्रिकोण के स्वामियों से होता है तो यह केन्द्र त्रिकोण सम्बन्ध कहलाता है. केन्द्र त्रिकोण में त्रिकोण लक्ष्मी का व केन्द्र विष्णु का स्वरूप होता है. यह योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में पाया जाता है वह बहुत ही भाग्यशाली होता है. यह योग मान सम्मान, धन वैभव देने वाला होता है.
राजयोग के प्रकार (Types of Rajyoga)
विपरीत राजयोग (Vipreet Rajyoga)त्रिक स्थानों के स्वामी त्रिक स्थानों (If the Trikha lorda are in the Trika houses) में हों या युति अथवा दृष्टि सम्बन्ध बनते हों तो विपरीत राजयोग बनता है. इसे उदाहरण से इस प्रकार समझा जा सकता है कि अष्टमेश व्यय भाव या षष्ठ भाव में हो एवं षष्ठेश यदि अष्टम में, व्ययेश षष्ठ या अष्टम में हो तो इन त्रिक भावों के स्वामियों की युति दृष्टि अथवा परस्पर सम्बन्ध हो और दूसरे सम्बन्ध नहीं हों तो यह व्यक्ति को अत्यंत धनवान और खुशहाल बनाता है. इस योग में व्यक्ति महाराजाओं के समान सुख प्राप्त करता है. ज्योतिष ग्रंथों में यह भी बताया गया है कि अशुभ फल देने वाला ग्रह जब स्वयं अशुभ भाव में होता है तो अशुभ प्रभाव नष्ट हो जाता है.
केन्द्र त्रिकोण राजयोग (Kendra Trikon Rajyoga)
कुण्डली में जब लग्नेश का सम्बन्ध केन्द्र या त्रिकोण के स्वामियों से होता है तो यह केन्द्र त्रिकोण सम्बन्ध कहलाता है. केन्द्र त्रिकोण में त्रिकोण लक्ष्मी का व केन्द्र विष्णु का स्वरूप होता है. यह योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में पाया जाता है वह बहुत ही भाग्यशाली होता है. यह योग मान सम्मान, धन वैभव देने वाला होता है.
नीचभंग राजयोग (Neechbhang Raj yoga)
कुण्डली में जब कोई ग्रह नीच राशि का होता है और जिस भाव में वह होता है उस भाव का राशिश अगर उच्च राशि में हो अथवा लग्न से केन्द्र में उसकी स्थिति हो तब यह नीचभंग राजयोग कहा जाता है. उदाहरण के तौर बृहस्पति मकर राशि में नीच का होता है लेकिन मकर का स्वामी शनि उच्च में है तो यह भंग हो जाता है जिससे नीचभंग राजयोग बनता है.
कुण्डली में जब कोई ग्रह नीच राशि का होता है और जिस भाव में वह होता है उस भाव का राशिश अगर उच्च राशि में हो अथवा लग्न से केन्द्र में उसकी स्थिति हो तब यह नीचभंग राजयोग कहा जाता है. उदाहरण के तौर बृहस्पति मकर राशि में नीच का होता है लेकिन मकर का स्वामी शनि उच्च में है तो यह भंग हो जाता है जिससे नीचभंग राजयोग बनता है.
कलानिधि योग (Kalanidhi Yoga)
जन्म कुण्डली (Kundli) में द्वितीय अथवा पंचम भाव में गुरू के साथ बुध या शुक्र की युति होने पर कलानिधि योग (Kalanidhi Yoga) बनता है. गुरू यदि द्वितीय अथवा पंचम में हो और शुक्र या बुध उसे देख रहे हों तब भी कलानिधि योग का निर्माण होता है. यह योग राजयोग की श्रेणी में आता है. जिस व्यक्ति की कुण्डली में यह योग बनता है वह कलाओं में निपुण होता है. अपनी योग्यता से धन-दौलत अर्जित करता है. वाहन सुख तथा समाज में इन्हें प्रतिष्ठित भी मिलती है. राजनीति में भी यह सफल हो सकते हैं.
जन्म कुण्डली (Kundli) में द्वितीय अथवा पंचम भाव में गुरू के साथ बुध या शुक्र की युति होने पर कलानिधि योग (Kalanidhi Yoga) बनता है. गुरू यदि द्वितीय अथवा पंचम में हो और शुक्र या बुध उसे देख रहे हों तब भी कलानिधि योग का निर्माण होता है. यह योग राजयोग की श्रेणी में आता है. जिस व्यक्ति की कुण्डली में यह योग बनता है वह कलाओं में निपुण होता है. अपनी योग्यता से धन-दौलत अर्जित करता है. वाहन सुख तथा समाज में इन्हें प्रतिष्ठित भी मिलती है. राजनीति में भी यह सफल हो सकते हैं.
काहल योग (Kahal Yoga)
गुरू एवं चतुर्थेश एक दूसरे से केन्द्र में हों और लग्नेश बलवान हों तो काहल योग (Kahal Yoga) बनता है. काहल योग तब भी बनता है जब चतुर्थेश एवं लग्नेश दोनों एक दूसरे से केन्द्र भाव में विराजमान हों. काहल राजयोग जिस व्यक्ति की जन्म कुण्डली में होता है वह बहादुर एवं साहसी होता है. वह जहां भी कार्य करता है उसकी भूमिका नेता के समान होती है. यह राजनेता अथवा किसी संस्थान के प्रमुख हो सकते हैं. आर्थिक स्थिति मजबूत रहती है.
गुरू एवं चतुर्थेश एक दूसरे से केन्द्र में हों और लग्नेश बलवान हों तो काहल योग (Kahal Yoga) बनता है. काहल योग तब भी बनता है जब चतुर्थेश एवं लग्नेश दोनों एक दूसरे से केन्द्र भाव में विराजमान हों. काहल राजयोग जिस व्यक्ति की जन्म कुण्डली में होता है वह बहादुर एवं साहसी होता है. वह जहां भी कार्य करता है उसकी भूमिका नेता के समान होती है. यह राजनेता अथवा किसी संस्थान के प्रमुख हो सकते हैं. आर्थिक स्थिति मजबूत रहती है.
अमारक योग (Amarak Yoga)
सप्तमेश एवं नवमेश में गृह परिवर्तन योग होने पर अमारक योग (Amarak Yoga) बनता है. अमारक योग में सप्तमेश एवं नवमेश दोनों का बलवान होना जरूरी होता है. इस राजयोग वाले व्यक्ति को विवाह के पश्चात भाग्य का पूर्ण सहयोग मिलता है. इनका जीवनसाथी गुणवान होता है तथा वैवाहिक जीवन खुशहाल रहता है. धर्म-कर्म में इनकी गहरी आस्था होती है. विद्वान के रूप में इन्हें सम्मान मिलता है. वृद्धावस्था आन्नद एवं सुख से बिताते हैं.
सप्तमेश एवं नवमेश में गृह परिवर्तन योग होने पर अमारक योग (Amarak Yoga) बनता है. अमारक योग में सप्तमेश एवं नवमेश दोनों का बलवान होना जरूरी होता है. इस राजयोग वाले व्यक्ति को विवाह के पश्चात भाग्य का पूर्ण सहयोग मिलता है. इनका जीवनसाथी गुणवान होता है तथा वैवाहिक जीवन खुशहाल रहता है. धर्म-कर्म में इनकी गहरी आस्था होती है. विद्वान के रूप में इन्हें सम्मान मिलता है. वृद्धावस्था आन्नद एवं सुख से बिताते हैं.
गजकेशरी योग (Gajakesari Yoga)
गजकेशरी योग को केशरी योग के नाम से भी जाना जाता है. यह योग गुरू चन्द्र के एक दूसरे से केन्द्र में स्थित होने पर बनता है. यह उच्च कोटि का राजयोग होता है. जिनकी कुण्डली में यह राजयोग होता है वह सुखी जीवन जीते हैं. इनके सगे-सम्बन्धियों की संख्या अधिक होती है तथा उनसे पूरा सहयोग मिलता है. गजकेशरी योग से प्रभावित व्यक्ति अपने नेक एवं नम्र स्वभाव के कारण प्रतिष्ठित होते हैं तथा आत्मविश्वास एवं मजबूत इरादों से मुश्किल हालातों एवं चुनौतियो का सामना भी आसानी से कर पाते हैं. इनका यह गुण इन्हें कामयाबी दिलाता है.
गजकेशरी योग (Gajkesari Yoga)
ज्योतिष शास्त्र में कई शुभ और अशुभ योगों का वर्णन किया गया है| शुभ योगों में गजकेशरी योग को अत्यंत शुभ फलदायी योग के रूप में जाना जाता है|
गजकेशरी योग (Gajkesari Yoga) को असाधारण योग की श्रेणी में रखा गया है। यह योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में उपस्थित होता है उस व्यक्ति को जीवन में कभी भी अभाव नहीं खटकता है। इस योग के साथ जन्म लेने वाले व्यक्ति की ओर धन, यश, कीर्ति स्वत: खींची चली आती है। जब कुण्डली में गुरू और चन्द्र पूर्ण कारक प्रभाव के साथ होते हैं तब यह योग बनता है। लग्न स्थान में कर्क, धनु, मीन, मेष या वृश्चिक हो तब यह कारक प्रभाव के साथ माना जाता है। हलांकि अकारक होने पर भी फलदायी माना जाता परंतु यह मध्यम दर्जे का होता है। चन्द्रमा से केन्द्र स्थान में 1, 4, 7, 10 बृहस्पति होने से गजकेशरी योग बनता है। इसके अलावा अगर चन्द्रमा के साथ बृहस्पति हो तब भी यह योग बनता है। कभी-कभी इन ग्रहों कि क्षमता कम होने पर जैसे ग्रह के बाल्या, मृता अथवा वृद्धावस्था इत्यादि में होने पर इस योग के प्रभाव को बढ़ाने हेतु ज्योतिषीय उपाय करने से इस राजयोग में वृद्धि होती है एवं व्यक्ति और अधिक लाभ प्राप्त कर पाता है |
गजकेशरी योग को केशरी योग के नाम से भी जाना जाता है. यह योग गुरू चन्द्र के एक दूसरे से केन्द्र में स्थित होने पर बनता है. यह उच्च कोटि का राजयोग होता है. जिनकी कुण्डली में यह राजयोग होता है वह सुखी जीवन जीते हैं. इनके सगे-सम्बन्धियों की संख्या अधिक होती है तथा उनसे पूरा सहयोग मिलता है. गजकेशरी योग से प्रभावित व्यक्ति अपने नेक एवं नम्र स्वभाव के कारण प्रतिष्ठित होते हैं तथा आत्मविश्वास एवं मजबूत इरादों से मुश्किल हालातों एवं चुनौतियो का सामना भी आसानी से कर पाते हैं. इनका यह गुण इन्हें कामयाबी दिलाता है.
गजकेशरी योग (Gajkesari Yoga)
ज्योतिष शास्त्र में कई शुभ और अशुभ योगों का वर्णन किया गया है| शुभ योगों में गजकेशरी योग को अत्यंत शुभ फलदायी योग के रूप में जाना जाता है|
गजकेशरी योग (Gajkesari Yoga) को असाधारण योग की श्रेणी में रखा गया है। यह योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में उपस्थित होता है उस व्यक्ति को जीवन में कभी भी अभाव नहीं खटकता है। इस योग के साथ जन्म लेने वाले व्यक्ति की ओर धन, यश, कीर्ति स्वत: खींची चली आती है। जब कुण्डली में गुरू और चन्द्र पूर्ण कारक प्रभाव के साथ होते हैं तब यह योग बनता है। लग्न स्थान में कर्क, धनु, मीन, मेष या वृश्चिक हो तब यह कारक प्रभाव के साथ माना जाता है। हलांकि अकारक होने पर भी फलदायी माना जाता परंतु यह मध्यम दर्जे का होता है। चन्द्रमा से केन्द्र स्थान में 1, 4, 7, 10 बृहस्पति होने से गजकेशरी योग बनता है। इसके अलावा अगर चन्द्रमा के साथ बृहस्पति हो तब भी यह योग बनता है। कभी-कभी इन ग्रहों कि क्षमता कम होने पर जैसे ग्रह के बाल्या, मृता अथवा वृद्धावस्था इत्यादि में होने पर इस योग के प्रभाव को बढ़ाने हेतु ज्योतिषीय उपाय करने से इस राजयोग में वृद्धि होती है एवं व्यक्ति और अधिक लाभ प्राप्त कर पाता है |
लक्ष्मी योग (Laxmi Yoga)
राजयोग की श्रेणी में लक्ष्मी योग का नाम भी लिया जाता है. नवमेश की युति लग्नेश अथवा पंचमेश के साथ होने पर यह योग (Gaja Kesari Yoga) बनता है. लक्ष्मी राज योग वाले व्यक्ति काफी धन अर्जित करता है. मान्यता है कि जिस व्यक्ति की जन्म कुण्डली में यह योग होता है वह धन-सम्पत्ति एवं वैभव से परिपूर्ण सुखमय जीवन जीवन जीते हैं. समाज में इन्हें सम्मान मिलता है. परिवार में यह आदरणीय होते हैं.
राजयोग की श्रेणी में लक्ष्मी योग का नाम भी लिया जाता है. नवमेश की युति लग्नेश अथवा पंचमेश के साथ होने पर यह योग (Gaja Kesari Yoga) बनता है. लक्ष्मी राज योग वाले व्यक्ति काफी धन अर्जित करता है. मान्यता है कि जिस व्यक्ति की जन्म कुण्डली में यह योग होता है वह धन-सम्पत्ति एवं वैभव से परिपूर्ण सुखमय जीवन जीवन जीते हैं. समाज में इन्हें सम्मान मिलता है. परिवार में यह आदरणीय होते हैं.
अमला योग (Amala Yoga)
चन्द्रमा जिस भाव में हो उससे दसवें घर में कोई शुभ ग्रह होने पर अमला योग बनता है. शुभ ग्रह पर किसी पाप ग्रह का प्रभाव नहीं होना चाहिए. कुण्डली में यह स्थिति बन रही हो तो जीवन भर सुख एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है. ज्योतिषशास्त्र में इस योग के विषय में कहा गया है कि जो व्यक्ति इस योग के साथ जन्म लेता है वह भले ही गरीब परिवार में जन्म ले परंतु गरीबी का साया उस पर नहीं रहता है.
चन्द्रमा जिस भाव में हो उससे दसवें घर में कोई शुभ ग्रह होने पर अमला योग बनता है. शुभ ग्रह पर किसी पाप ग्रह का प्रभाव नहीं होना चाहिए. कुण्डली में यह स्थिति बन रही हो तो जीवन भर सुख एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है. ज्योतिषशास्त्र में इस योग के विषय में कहा गया है कि जो व्यक्ति इस योग के साथ जन्म लेता है वह भले ही गरीब परिवार में जन्म ले परंतु गरीबी का साया उस पर नहीं रहता है.
राजयोग (Raja Yoga)
उपरोक्त योग राजयोग की श्रेणी में रखे गये हैं परंतु मूल रूप से जिसे राजयोग कहते हैं वह तब बनता है जब केन्द्र अथवा त्रिकोण के स्वामी एक दूसरे के घर में बैठें अथवा दो केन्द्र भाव के स्वामी गृह परिवर्तन करें और त्रिकोण भाव के स्वामी की उनपर दृष्टि हो. यह राजयोग जिस व्यक्ति की कुण्डली (Kundli) में होता है वह राजा के समान वैभवपू्र्ण जीवन जीता है. इनकी आयु लम्बी होती है. जबतक जीते हैं सम्मान से जीते हैं मृत्यु के पश्चात भी इनकी ख्याति व नाम बना रहता है.
उपरोक्त योग राजयोग की श्रेणी में रखे गये हैं परंतु मूल रूप से जिसे राजयोग कहते हैं वह तब बनता है जब केन्द्र अथवा त्रिकोण के स्वामी एक दूसरे के घर में बैठें अथवा दो केन्द्र भाव के स्वामी गृह परिवर्तन करें और त्रिकोण भाव के स्वामी की उनपर दृष्टि हो. यह राजयोग जिस व्यक्ति की कुण्डली (Kundli) में होता है वह राजा के समान वैभवपू्र्ण जीवन जीता है. इनकी आयु लम्बी होती है. जबतक जीते हैं सम्मान से जीते हैं मृत्यु के पश्चात भी इनकी ख्याति व नाम बना रहता है.
आपकी कुंडली में राज योग और विपरीत राज योग का फल
Reviewed by Jyotish kirpa
on
03:18
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if lagnesh is in 5th house & lord of fifth house is in lagna as cancer is a lagna .
ReplyDeleteand jupitor is watching lagna from 5th house . tell me what was the result
lagna 4, planet accupy venus & Mars, in 5th house jupitor & moon
Avoid the astrology trap of using the Sidereal zodiac exclusively (or practitioners who do) or risk vast inaccuracies. The true Ascendant (Rising sign), in our opinion, is where the Eastern horizon intercepts the Ecliptic. This is so in the Tropical zodiac system, but not the Sidereal. Using that system, due to the current 20+ degree difference between the zodiacs, you'll likely have a different Ascendant, Sun sign, and Moon sign, among other differences. business name numerology
ReplyDeleteAvoid the astrology trap of using the Sidereal zodiac exclusively (or practitioners who do) or risk vast inaccuracies. The true Ascendant (Rising sign), in our opinion, is where the Eastern horizon intercepts the Ecliptic. This is so in the Tropical zodiac system, but not the Sidereal. Using that system, due to the current 20+ degree difference between the zodiacs, you'll likely have a different Ascendant, Sun sign, and Moon sign, among other differences. get backlinks
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